19 मई को शिलचर असम के शहीदों को याद किया गया।

धनबाद : आज संध्या में लुबि सर्कुलर रोड धनबाद में “शिल्पे अनन्या” त्रैमासिक बंगला पत्रिका के संपादक प्रो. डॉ. दीपक कुमार सेन के आवासीय कार्यालय में शिलचर भाषा दिवस मनाया गया। प्रो. डॉ. डी. के. सेन शहीदों के तस्वीर पर पुष्प अर्पित करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि आज से 64 वर्ष पूर्व असम के बांग्ला भाषी अपने मातृभाषा के लिए जीवन का बलिदान दिया। असम सरकार ने विधानसभा में सिर्फ आसामी में पढ़ाई के लिए कानून पास कर दिया था। असम में बड़े पैमाने पर बांग्ला भाषी रहते हैं। वे असम के मूल निवासी है।खासकर शिलचर क्षेत्र के वहां के तमाम बांग्ला भाषी और पूरे असम के बांग्ला भाषी ने असम सरकार के इस नीति का तीव्र विरोध किया। इस विरोध को लेकर शिलचर स्टेशन में धरना चल रहा था, असम राइफल्स के गोली से 11 नौजवान शहीद हो गए। उसके बाद बाध्य होकर असम सरकार को शिलचर क्षेत्र में बांग्ला को द्वितीय राज्य भाषा बनाना पड़ा। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि 1952 में बांग्लादेश में उस समय यह तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान था। 21 फरवरी को नौजवानों ने बांग्ला भाषा के लिए शहादत दिया। यही नहीं बांग्ला भाषा के लिए पुरुलिया जो उस समय मानभूम था 1912 से लेकर 1956 तक लगातार संघर्ष कर मातृभाषा के नाम पर बिहार से फिर पश्चिम बंगाल में मिला। पूरे दुनिया में भाषा आंदोलन का यह अपने आप में अनोखा मिसाल है। मैंने अपने पत्रिका में अप्रैल एवं जून 2022 माह के अंक में विस्तारित ढंग से शिलचर के भाषा आंदोलन पर लेख प्रकाशित किया है इसे पुन पढ़ने की जरूरत है। भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. काशी नाथ चटर्जी ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए प्रो. डॉ. दीपक सेन को धन्यवाद दिया। इस तरह की आयोजन करने के लिए उन्होंने कहा कि “शिल्पे अनन्या” पत्रिका धनबाद में लगातार लिटिल मैगजीन मेला सह सम्मेलन कर रहा है। इस मेला में एक महत्वपूर्ण विषय रखा गया था की भाषा के समन्वय से ही भाषा का विकास संभव है। हमें बार-बार शिलचर के शहीदों को याद करना होगा । उन्होंने मातृभाषा के लिए अपने जीवन को बलिदान दे दिया। आजादी के 78 वर्ष के बाद भी आदिवासी, शोषित, वंचित अपने मातृ – भाषा में पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। किसी भी समाज के विकास में मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है, मातृभाषा में पढ़ाई होने से बच्चों में समझने की शक्ति बढ़ती है। शिलचर के शहादत आंदोलन बांग्लादेश के भाषा आंदोलन के साथ-साथ पुरुलिया के 44 वर्षों का भाषा आंदोलन ने हमें एक दिशा दिया है। आज हमें प्रण करना चाहिए कि हम अपने बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा दें। साथ – साथ झारखंड सरकार से यह आह्वान करते हैं कि जिन 12 भाषाओं को द्वितीय भाषा बनाया गया है स्कूल या स्तर से उनका पढ़ाई शुरू किया जाए।

श्रीमती बरनाली गुप्ता ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमें अपने भाषा पर गर्व है, दुनिया में हमारी जाति अर्थात बंगाली समुदाय ने ही भाषा के लिए अपना जीवन का बलिदान दिया है जब तक सब मानव सभ्यता रहेगा तब तक बांग्ला भाषा रहेगा। श्रीमती वंदना चौधरी ने कहा की मैं बांग्ला स्कूल में शिक्षिका रही साथ-साथ प्रधानाध्यापक भी रही मेरी स्कूल में बांग्ला में पढ़ाई होती थी लेकिन धीरे-धीरे पुस्तकों के कमी के कारण और वैश्वीकरण के चलते बांग्ला स्टूडेंट घटने लगे, आज के समय में बच्चों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। ज्ञान विज्ञान समिति के राज्य सचिव भोला नाथ राम द्वारा भाषा आंदोलन के शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि ज्ञान विज्ञान समिति लगातार शिक्षा, स्वास्थ, वैज्ञानिक चेतना , सामाजिक सुरक्षा आदि जन मुद्दों पर कार्य करते आ रही है इसके साथ मातृ भाषा के लिए भी समय – समय पर गांव स्तर से जिला स्तर पर कई कार्यक्रम कर चुकी है, आगे भी मातृ भाषा पर कार्य करेंगे। आज के कार्यक्रम में परेश नाथ बनर्जी, पार्थों सेन गुप्ता, वैशाखी चंद्र भी अपना विचार रखा। बैठक की अध्यक्षता व संचालन कवि कनकन गुप्ता के द्वारा किया गया।

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