हूल दिवस के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

धनबाद : ज्ञान विज्ञान समिति और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एडवा) के संयुक्त तत्वाधान में आरएमकेफोर कॉलोनी में हूल दिवस पर संगोष्ठी रखी गई। संगोष्ठी की अध्यक्षता महिला समिति की अध्यक्ष रानी मिश्रा और संचालन ज्ञान विज्ञान समिति के जिला सचिव भोला नाथ राम ने किया। संगोष्ठी के मुख्य वक्ता भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डा. काशीनाथ चटर्जी ने संबोधित करते हुए कहा कि आज से 170 साल पहले 1855 – 56 में दामिने – कोह जिसे अब संताल परगना कहा जाता है, वहां संताल हूल की ऐतिहासिक घटना हुई थी। इस हूल के माध्यम से ब्रिटिश साम्राज्यवाद के साथ – साथ इस इलाके के जमींदारों और महाजनों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका गया था. जिसका नेतृत्व सिदो – कान्हू, चांद – भैरव और फूलो – झानो ने किया था। यह यहां के किसानों का विद्रोह था जिसने 1857 में शुरू हुए देश को गुलामी से मुक्त करने की आज़ादी के लड़ाई की पृष्ठभूमि तय कर दी थी। यह हूल संताल आदिवासियों और अन्य गरीबों की सामुदायिक और सामुहिक स्वामित्व वाली जमीन जिसे को जमींदारों और महाजनों द्वारा जबरन कब्जा किए जाने के खिलाफ शुरू हुआ और इस क्षेत्र के तमाम गरीब भी इस विद्रोह में शामिल हो गए इस विद्रोह को दबाने और इस इलाके के शोषकों की मदद के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी फौज भेज दी. जिसका जबर्दस्त प्रतिरोध हुआ और 60 हजार संताल विद्रोहियों ने अपने परंपरागत हथियारों के साथ इस बंदुकधारी फौज का बहादुरी से मुकाबला करते हुए इन्हें खदेड़ दिया। जमींदारों और महाजनों के जुल्म के खिलाफ आम जनता के इस प्रतिरोध ने सात समुंदर पार बैठे ब्रिटिश शासकों को भी हिला दिया। किसान सभा के वरिष्ठ नेता संतोष कुमार महतो ने कहा कि महान चिंतक और वैज्ञानिक समाजवाद के प्रणेता कार्ल मार्क्स ने संताल हूल को भारत का पहला जन विद्रोह बताया। इस लड़ाई में सिदो – कान्हू समेत 10 हजार से ज्यादा लोग शहीद हुए लेकिन इस विद्रोह (हूल) ने स्वतंत्रता संग्राम की भूमिका लिख दी। क्योंकि यह हूल जिसका नेतृत्व सिदो – कान्हू जैसे बीर योद्धा कर रहे थे ने इस इलाके के सभी गरीबों को एकजुट करने का काम किया। आज जब हम संताल हूल के गौरवपूर्ण विरासत को याद करते हैं तब हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि संताल हूल और बिरसा मुंडा के उलगुलान के शानदार संघर्ष के चलते ही छोटानागपुर काश्तकारी कानून और संतालपरगना काश्तकारी कानून बना जिसे यहां के आदिवासियों व अन्य गरीबों की जमीन का रक्षा कवच कहा जाता है। ज्ञान विज्ञान समिति के सक्रिय कार्यकर्ता विकास कुमार ठाकुर ने कहा कि आज देश के शासक वर्ग की मदद से यहां के बड़े पूंजीपतियों द्वारा झारखंड और छत्तीसगढ़ समेत अन्य राज्यों के आदिवासी बहुल इलाकों के प्राकृतिक संसाधनों और खनिज सम्पदा की लूट के लिए इन कानूनों को कमजोर करने के साथ – साथ संविधान के 5 वीं अनुसूची के तहत यहां के लोगों के लिए दिए गए संवैधानिक प्रावधानों और ग्रामसभाओं के अधिकारों को भी कमजोर कर रहा है. इसलिए झारखंड के मेहनतकशों को संताल हूल की गौरवपूर्ण विरासत को याद करते हुए जल, जंगल, जमीन की रक्षा के लिए चल रहे संघर्षों को और तेज करना होगा साथ ही कार्पोरेट गंठजोड़ की विभाजनकारी साजिश को भी परास्त करना होगा ताकि हमारे पूर्वजों ने शोषण के खिलाफ जो संघर्ष चलाया था उनकी शानदार विरासत को आगे बढाया जा सके।

संगोष्ठी को ज्ञान विज्ञान समिति के राज्य उपाध्यक्ष हेमंत कुमार जयसवाल, भारत ज्ञान विज्ञान समिति के राष्ट्रीय कार्यकारिणी रवि सिंह, महिला समिति की जिला अध्यक्ष उपासी महताइन, मिठू दास, सविता देवी, रंजू प्रसाद, ठेका मजदूर यूनियन के महासचिव गौतम प्रसाद, ठेका मजदूर यूनियन सचिव सूर्य कुमार सिंह, सुबल चंद्र दास, ज्ञान विज्ञान समिति के मधुमिता मिस्त्री, राजू बाउरी ने संबोधित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में मधेश्वर नाथ भगत, नरेंद्र नाथ दास, शिबू राय, प्रमोद सिंहा, शिवेंद्र पांडे, ज्योति राय की सराहनीय भूमिका रही।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *